लोकप्रियता में पिछड़ने के बावजूद बिहार में इस साल होने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राह अधिक कठिन नहीं दिख रही है। इसकी बड़ी वजह विपक्षी खेमे में किसी ताकतवर चेहरे का नहीं होना है। राजद नेता तेजस्वी यादव ही अकेले उन्हें चुनौती देते दिख रहे हैं। लेकिन, लालू के बिना तेजस्वी कितने प्रभावी होंगे, यह समय ही बताएगा। राजद की अपनी मुश्किलें भी कम नहीं हैं। रघुवंश प्रसाद सिंह लगातार नाराज चल रहे हैं। तेजस्वी के बड़े भाई तेजप्रताप के रंगढंग भी कुछ ठीक नहीं हैं। इनके बीच में चुनावी रणनीतिकार और जद यू के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर राह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि वह अभी सिर्फ विकास की ही बात कर रहे हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं हैं। केंद्रीय स्तर पर मोदी के सामने भी फिलहाल कोई चुनौती न होने की वजह से खुद नीतीश भी इस बार भाजपा को कोई गच्चा नहीं देना चाहते, क्योंकि ऐसा करने से किसी को भी लाभ नहीं होगा। भाजपा भी महाराष्ट्र में चोट खाने के बाद किसी भी राज्य में ऐसी स्थिति नहीं पैदा करना चाहती, जिससे समर्थक दलों में उसके प्रति अविश्वास पैदा हो। कोरोना की वजह से इस बार बिहार में प्रचार भी सीमित ही रहेगा, ऐसे में दलों की विश्वसनीयता बड़ी भूमिका निभाएगी।