देहरादून। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच उत्तराखंड में 7364 लोगों की जांच रिपोर्ट अभी लंबित है। राज्य में स्क्रीनिंग और मास टेस्टिंग न होने की वजह से स्थिति का सही अनुमान नहीं हो पा रहा है। इसी वजह से किसी दिन मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और किसी दिन घट रहे हैं। हर जिले में आ रहे मामलों में भी एकरूपता नहीं हैं। राज्य सरकार यह मान रही है कि उत्तराखंड में बाहर से ही कोरोना आ रहा है, इसलिए बस सीमाओं पर कुछ सख्ती दिखती है, लेकिन सरकार के स्तर पर ऐहतियाती उपायों की भारी कमी है। आपदा के नाम पर अफसर और पुलिस राज तो हावी है, लेकिन कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग को लेकर लगभग नगण्य प्रयास हो रहे हैं। शुक्रवार को भी कोरोना के 272 नए मामले सामने आए हैं, जबकि 42 लोग ठीक हुए हैं। सर्वाधिक 90 मामले ऊधमसिंह नगर से आए हैं। राज्य में रोज मिलने वाले संक्रमण के मामलों में बड़ी संख्या उनकी होती है, जिनकी यात्रा की जानकारी सरकार को मालूम ही नहीं होती। यानी ये वो लोगा होते हैं, जिनके बारे में बस पता चल जाता है। इससे साफ है कि सरकारी स्तर पर ट्रेसिंग के प्रयास कितने कमजोर हैं। क्वारेंटीन में रह रहे लोगों की तक सही से निगरानी नहीं होती है। यही वजह है कि राज्य में कोरोना काबू नहीं हो पा रहा है। कोरोना के दौर में भी वीवीआईपी के लिए खास व्यवस्था है। उन्हें क्वारेंटीन से भी छूट है। लेकिन यह वायरस समानतावादी है, जो राजा और रंक में कोई भेदभाव नहीं करता है। शुक्रवार को मिले 272 पॉजिटिव मामलों में भी 114 लोगों की ट्रैवल हिस्ट्री सरकार को मालूम ही नहीं है। उत्तराखंड सरकार इस बीमारी को डंडे के बल पर रोकना चाहती है, जबकि इस पर रोक सिर्फ वैज्ञानिक उपायों से ही लग सकती है।