चंडीगढ़। हरियाणा के रजिस्ट्री घोटाले में एक के बाद एक परतें उधड़ रही है। इसने विपक्ष को सरकार पर हमलावर होने का एक और मौका दे दिया है। शराब घोटाले के बाद यह दूसरा प्रकरण है जब सरकार की सहयोगी जेजेपी पर अंगुली उठी है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि इस घोटाले से चाचा-भतीजा की लड़ाई भी खुलकर सामने आ गई है। चाचा यानी अभय सिंह चौटाला और भतीजा यानी दुष्यंत चौटाला दोनों एक दूसरे को जरा भी पसंद नहीं करते हैं। चाचा के सपनों को रौंदकर राज्य में डिप्टी सीएम बने दुष्यंत बराबर अभय सिंह के आंखों की किरिकरी बने हुए हैं। अभय सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि प्रदेश में जितने भी घोटाले हो रहे हैं, आखिर उनके तार एक ही मंत्री से क्यों जुड़ रहे हैं। असल में प्रदेश में जाटों की चौधर किसके पास है इसे लेकर ही लड़ाई चल रही है। 2014 के चुनाव से पहले ओमप्रकाश चौटाला राजनीतिक रूप से जाटों के सबसे बड़े नेता थे। जाट तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी हैं, लेकिन वे जाट नेता के रूप में उस तरह से नहीं जाने जाते। बड़े चौटाला और अजय सिंह चौटाला के जेल जाने के बाद से ही चौटाला परिवार में ओमप्रकाश चौटाला के राजनीतिक वारिस के लिए चल रही लड़ाई पिछले साल चुनाव से पहले खुलकर सामने आ गई थी। दुष्यंत ने चाचा को खुली चुनौती दे दी और नई पार्टी बना डाली। बड़े चौटाला के विरोध के बावजूद विधासभा चुनाव में भतीजा चाचा से आगे निकल गया और सरकार में हिस्सेदार बन गया। सरकार में हिस्सेदारी के बावजूद न तो जजपा और न ही दुष्यंत अभी वह स्थान हासिल कर सके हैं, जो उनके दादा ओमप्रकाश चौटाला या पड़दादा चौधरी देवीलाल को हासिल था।
दुष्यंत और उनके करीबी लोगों पर अब आरोप लगने से निश्चित ही जजपा की स्थिति कमजोर होगी। यही नहीं पार्टी के भीतर ही अपने लोगों की उपेक्षा के आरोप भी जजपा की मुश्किल बढ़ा सकती है। यही नहीं जिस भाजपा का विरोध करके जजपा आगे बढ़ी थी, वहीं भाजपा अब उसकी सहयोगी है। इन दोनों की दोस्ती की पहली परीक्षा बरोदा उपचुनाव में होने जा रही है। जाट बहुल इस सीट के परिणाम से यह तो साबित नहीं होगा कि हरियाणा में जाटों का नेता कौन है, लेकिन इस सीट पर भाजपा-जजपा की हार हुई तो इसका प्रभाव सरकार पर भी पड़ सकता है। वहीं अभय सिंह की कोशिश है किसी तरह से वह इस चुनाव में इनेलो की ताकत को दिखा दें। क्योंकि विधानसभा की करारी हार के सदमे से इनेलो अभी उबर नहीं सकी है।