राजनीतिक संवाददाता
देहरादून। एक बार फिर सवालों का सिलसिला शुरू करते हैं, लेकिन हम साथ ही यह डिस्क्लेमर भी जोड़ना चाहते हैं कि हमारी मंशा किसी सरकार को बदलने की नहीं है, क्योंकि सरकारें हमेशा अपने ही कार्यों से दोबारा चुनी जाती हैं या नकार दी जाती हैं। उत्तराखंड में तो हर सरकार नकार दी जाती है यानी किसी को भी दोबारा चांस नहीं मिलता। इससे सवाल यही उठता है कि आखिर जनता सरकार से क्या चाहती है। अगर हम पिछले 30 साल की अपनी पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर इसका विश्लेषण करें तो पता चलता है कि जनता जो सरकार से चाहती है, वह बहुत ही आसान और सस्ती चीज होती है। अब कोई कह सकता है कि हम क्या सर्वज्ञाता हो गए, जो लोगों के मन की बात जान लेते हैं। कुछ मुख्यमंत्री लंबे समय तक सत्ता में रहे हैं, उनमें भाजपा के शिवराज सिंह चौहान और डॉ. रमन सिंह, वामपंथी ज्योति बसु व माणिक सरकार, तृणमृल कांग्रेस से ममता बनर्जी, जदयू के नीतीश कुमार शामिल हैं। इनमें से अगर इस सभी लोगों में पहले कार्यकाल की जो सबसे बड़ी खूबी थी वह थी इन सहजता, जमीन से जुड़ाव और आडंबरहीन होना। वहीं लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड प्रधानमंत्री मोदी के भी नाम है। वह तब मुख्यमंत्री बने थे, जब गुजरात भूकंप की विभीषिका झेल रहा था तक मोदी ने भी जिस तरह से जमीन से जुड़कर लोगों का दर्द बांटा उसने उन्हें जमीन से जोड़ दिया। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि लोगों को जमीन से जुड़ा नेता और सरकार पसंद है, जिसके पास जरूरत पर कभी भी जाया जा सकता हो और जो हर समय आम जनता के बारे में सोचता हो, रसूखदारों के बारे में नहीं। अब हम आपसे फिर सवाल करेंगे क्या त्रिवेंद्र सिंह रावत में यह खूबी है?
भाजपा के लंबे कार्यकाल वाले तीनों मुख्यमंत्रियों की बात करें तो उन्होंने राज्य में विकास को प्राथमिकता दी। यहां पर सबसे अहम बात यह है कि मोदी, शिवराज और रमन सिंह उस दौर में सत्ता में रहे, जब केंद्र में विपक्षी यूपीए सत्ता में थी। गुजरात मॉडल की तो लगतार चर्चा होती ही रहती है, लेकिन मध्य प्रदेश का मॉडल भी अनुकरणीय है, दिग्विजय सरकार के समय जिस मध्य प्रदेश में सड़कें चलने लायक नहीं थीं, आज वहां की खराब से खराब सड़क भी उत्तराखंड की बेहतरीन सड़क से अच्छी है। हर स्तर पर वहां का विकास यहां से अच्छा है। स्वच्छता सर्वेक्षण के पहले दो स्थानों पर इंदौर और भोपाल हैं। सवाल यह उठाया जा सकता है कि ये दोनों तो बहुत पुराने राज्य हैं। चलो फिर हम उत्तराखंड के ही साथ बने छत्तीसगढ़ की कर लेते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सामने देहरादून गांव जैसा नजर आएगा। पुराना शहर होने के बावजूद रमनसिंह ने हर गली, हर सड़क और चौराहे को चमकाया। स्काई वॉक यानी पैदल चलने के लिए बना एलीवेटेड मार्ग यह देहरादून के अनेक लोगों ने शायद ही देखा हो या किसी विदेशी फिल्म में देखा हो, लेकिन रायपुर में यह है। अगर आपको मॉर्निंग वॉक करनी है तो आपके घर से कुछ दूरी पर ही आपको पार्क मिल जाएगा, लेकिन देहरादून ही नहीं उत्तराखंड के तमाम शहरों में पार्क नहीं हैं। इन पर कभी सोचा ही नहीं गया। रायपुर में हर इलाके के लिए नए पार्क बनाए गए है। सवाल यह भी उठाया जा सकता है कि देहरादून तो अस्थायी राजधानी है, छत्तीसगढ़ में भी नया रायपुर बसाया गया है, लेकिन रायपुर को भगवान भरोसे नहीं छोड़ा गया है। फिर वही सवाल क्या उत्तराखंड सरकार लोगों की सड़क व पार्कों जैसी जरूरतों को पूरा कर सकी है? क्या स्मार्ट सिटी राजपुर रोड को ही बनना चाहिए? हरिद्वार रोड, सहारनपुर रोड और चकराता रोड पर रहने वाले लोगों को स्मार्ट सुविधाओं की दरकार नहीं है? क्या हम देहरादून या उत्तराखंड के हल्द्वानी, नैनीताल, हरिद्वार या अन्य किसी शहर को स्वच्छता की रैंकिंग में ला सकते हैं? क्या उत्तराखंड में किसी के पास इन सवाल सवालों का जवाब हां में है?
ऐसे ही कई सवालों के जवाब एडीटर्स व्यू रविवार को भी तलाशेगा।