चंडीगढ़। कोरोना का नेता प्रेम लगातार बढ़ने से यह तो साफ हो ही गया है कि अब कोरोना को बांधना आसान नहीं है। हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल से लेकर विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता तक कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। बाकी मंत्रियों, विधायकों और अफसरों की तो अब गिनती भी नहीं हो रही है। कोरोना के वीवीआईपी में प्रसार से देश के पांच सितारा अस्पतालों की मौज आ गई है। हर बड़ा नेता अब गुड़गांव के मेदांता अस्पताल की दौड़ लगा रहा है। यह वही अस्पताल है, जिसकी फाइल हरियाणा सरकार ने खोली हुई है। क्योंकि अस्पताल ने गरीबों के लिए किए गए वादे को पूरा नहीं किया था। अब गरीबों की कोई बड़ा अस्पताल क्यों सोचेगा? बेचारे वीवीआईपी गरीबों की खातिर इतना बलिदान कर रहे हैं कि उन्होंने तमाम सरकारी अस्पतालों को गरीबों के लिए समर्पित कर दिया है। अब भी गरीब अगर बड़े और अच्छे अस्पताल में भर्ती होने का सपना देखता है तो यह उसकी मूर्खता ही कही जाएगी। सरकारी अस्पतालों में क्या नहीं है? वह हर अव्यवस्था है, जिसका गरीब आदी है। लंबी लाइन से लेकर गंदगी और झिड़कने वाले स्टाफ से लेकर समय पर अस्पताल न आने वाले डॉक्टर सब कुछ है। इलाज का इंतजार ही कई बार इतना लंबा हो जाता है कि मरीज को आखिर में इसकी जरूरत ही नहीं रहती।
अगर नेता सचमुच में गरीबों की सोचते तो वे शायद इन्हीं सरकारी अस्पतालों में भर्ती होते। इससे एक तो इन अस्पतालों को हर समय सतर्क रहना पड़ता और दूसरे वीवीआईपी नेताओं को अपने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की हकीकत भी पता चलती। लेकिन, नेता तो नेता है। उसे पब्लिक की याद तो पांच साल बाद ही आती है और पब्लिक भी ऐसी है कि वह हाथ जोड़े नेताजी के उसके प्रति किए गए महान बलिदान को ही भूल जाती है। जब तक पब्लिक नेताओं से सवाल नहीं पूछेगी और उससे हर काम का हिसाब नहीं मांगेगी तक तक नेता जनता को मूर्ख बनाने के लिए ऐसे बलिदान करते ही रहेंगे।