देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अनिच्छा के बावजूद भाजपा संगठन ने जिस तरह से रुड़की के विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन को माफी दी है वह अनेक लोगों के गले नहीं उतर रही है। मुख्यमंत्री चाहते थे कि चैंपियन के मामले में जल्दबाजी न दिखाई जाए, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने उन्हें पार्टी में शामिल कर लिया। मुख्यमंत्री के अलावा राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी भी चैंपियन की तत्काल वापसी के पक्ष में नहीं थे। असल में चैंपियन के बयानों से पर्वतीय इलाके के लोग खासे आहत थे। वहीं मुख्यमंत्री भी पर्वतीय लोगों को लुभाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने और स्वतंत्रता दिवस पर भराड़ीसैण विधानसभा परिसर में ध्वजारोहण करके पर्वतीय जनमानस को संदेश देने की कोशिश की थी कि सरकार के लिए ये लोग अहम हैं। यही नहीं खुद मुख्यमंत्री ने गैरसैण में जमीन खरीदी और अन्य लोगों को भी ऐसा करके रिवर्स माइग्रेशन की गति को तेज करने का आह्वान किया। लेकिन चैंपियन की वापसी से कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की कोशिशों को चोट पहुंचाई है।
देखा जाए तो पिछले छह महीनों में राज्य सरकार ने सबसे बड़ी कोशिश उत्तराखंड लौटे लोगों को राज्य में ही स्थापित करने की दिशा में की है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना इस दिशा में एक गंभीर प्रयास माना जा सकता है। इस योजना का असर भले ही तत्काल नजर न आए, लेकिन इसका राज्य के लोगों को लाभ मिलना तय है और यह योजना गेमचेंजर भी साबित हो सकती है। अब जरूरी है कि भाजपा संगठन भी पर्वतीय मूल के लोगों की भावनाओं व सरकार की इच्छा को समझकर आगे बढ़े। संगठन को समझना चाहिए कि चैंपियन जैसे लोग किसी दल का भला नहीं कर सकते।
उत्तराखंड क्रांति दल ने तो चैंपियन की वापसी के खिलाफ मोर्चा भी खोल दिया है, लेकिन कांग्रेस ने चुप्पी साधी हुई है। असल में कांग्रेस के पास खबर है कि दागी चरित्र वाले कुछ और नेताओं की भाजपा में एंट्री हो सकती है। इसीलिए वह सही मौके पर इस पूरे मामले को उठाना चाहते हैं। वहीं मुख्यमंत्री को पता है कि पर्वतीय क्षेत्रों में भाजपा का समर्थन आज भी पहले की ही तरह बरकरार है, इसलिए वे इसे बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भाजपा में यह आम तौर पर माना जा रहा है कि चैंपियन के आने से भाजपा को लाभ तो नहीं होगा, लेकिन इससे नुकसान होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।