नई दिल्ली। संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) व राष्ट्रीय पात्रता कम प्रवेश परीक्षा (नीट) को लेकर विपक्ष का विरोध समझ से परे है। इन परीक्षाओं का विरोध करने वाले लोग लॉकडाउन के भी खिलाफ थे। ये लोग जल्द से जल्द आम जनजीवन की बहाली चाहते थे। अब अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के साथ जनजीवन धीरे-धीरे ही सही पटरी पर आने लगा है। एक सप्ताह बाद मेट्रो भी शुरू होने जा रही है। प्रदेशों में आने जाने पर लगी रोक हट गई है। लोगों को अपनी व अन्य लोगों की सुरक्षा के लिए सावधानी के साथ ही मास्क व सामाजिक दूरी जैसे नियमों का पालन करना ही है। दूसरे शब्दों में कहें तो अब सभी को कोरोना के साथ जीने की आदत डाली ही होगी। किसी भी चीज को अनंतकाल तक तो स्थगित नहीं किया जा सकता, खासकर शिक्षा जैसे विषय को तो बिल्कुल भी नहीं। आईआईटी और मेडिकल में प्रवेश के लिए होने वाली इन परीक्षाओं के आयोजन से शिक्षा को ढर्रे पर लाने की प्रक्रिया की शुरुआत होगी। रही बात संक्रमण बढ़ने की तो यह परीक्षा कराने वाली एजेंसी की जिम्मेदारी है कि वह सभी जरूरी नियमों का पालन करे। जहां तक बच्चों का सवाल है तो अब वे बाजार भी जाने लगें हैं और कुछ खेलों में भी हिस्सा लेने लगे हैं। इसके बावजूद कोरोना की दर में बढ़ोतरी असामान्य नहीं है। कोरोना के केस बढ़ने से चिंता तो है, लेकिन ठीक होने की दर जिस तरह से बढ़ी है, उसने राहत भी पहुंचाई है। सरकार दीपावली के बाद चरणबद्ध् तरीके से स्कूलों को खोल सकती है।
अगर इस समय शिक्षा की हालत को देखा जाए तो ऑनलाइन शिक्षा कहीं से भी परंपरागत शिक्षा का विकल्प नहीं बन पाई है। ऑनलाइन पेरेंट-टीचर्स मीटिंग में जिस तरह से अभिभावकों ने शिकायतें की हैं, उसने स्कूलों के कान खड़े कर दिए है। बड़ी संख्या में अभिभावकों का कहना है कि बच्चे ऑनलाइन शिक्षा को बहुत ही हल्के तरीके से ले रहे हैं। कई शिक्षक भी पढ़ाने में बस खानापूर्ति भर कर रहे हैं। कनेक्टिविटी में दिक्कत भी बाधक बन रही है। बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थी तो कुछ हद तक इसमें रुचि भी ले रहे हैं, लेकिन छोटी कक्षाओं के बच्चे उस तरह से गंभीर नहीं हो पा रहे हैं। हालांकि स्कूल भेजने को लेकर भी छोटे बच्चों की वजह से ही अधिक चिंता है। ऐसे में 12वीं कर चुके बच्चों को अगर जी व नीट की परीक्षा से वंचित किया जाता है तो यह उनके कैरियर के लिए बहुत ही नुकसानदायक हो सकता है। इन परीक्षाओं के प्रति गंभीर बच्चे तो हर हाल में इन्हें चाहते हैं। सिर्फ नाम के लिए परीक्षा देना वाले बच्चे ही इनसे भाग रहे हैं। दूसरी बड़ी बात यह है कि उम्र के इस पड़ाव पर बच्चे अगर चुनौतियों से डरने लगेंगे तो यह उनके भविष्य के लिए भी ठीक नहीं होगा।